The princely state of Jammu and Kashmir, merged with India रियासत ए जम्मू - कश्मीर

रियासत ए जम्मू और कश्मीर,भारत में विलय

RAJA HARI SINGH
महाराजाहरि सिंह  


रियासत ए जम्मू - कश्मीर: जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, और बाल्टिस्तान पांच अलग अलग क्षेत्र थे , जम्मू और कश्मीर पहले हिन्दू और बाद में मुस्लिम शासको  के अधीन रहा, मुग़ल साम्रज्य शासन काल में जम्मू और कश्मीर पर मुगलो का भी अधिपत्य रहा, 1819 में पंजाब के राजा रंजीत सिंह का शासन रहा और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान एक रियासत थी और उसके बाद 1846 से 1947 तक भारत में ब्रिटिश राज के दौरान भी एक रियासत रही। इस रियासत कि स्थापना प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध के बाद हुई, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने  सिखों से जीते गये कश्मीर घाटी, जम्मू, लद्दाख, और गिलगित-बाल्टिस्तान को अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद, डोगरा सम्राट महाराजा गुलाब सिंह को  75 लाख रुपये में बेच दिया।

 जम्मू कश्मीर के अंतिम शासक:

महाराजा हरिसिंह डोगरा वंश के अंतिम शासक थे जो 23 सितम्बर 1925 में जम्मू कश्मीर के राज गद्दी पर आशिन हुए 1947 तक  जम्मू कश्मीर पर शासन किया।


 महाराजा हरी सिंह सुधार कार्य:

शिक्षा, छुआछूत, जातिप्रथा, वेश्यावृति समेत कई सामाजिक सुधर के कार्य किये।
सन ~ 1930 के दशक में, कश्मीरी मुसलमान तत्कालीन महाराजा हरि सिंह से असंतुष्ट होने लगे, हालाँकि, राज्य में सामंती व्यवस्था बहुत कठोर थी,कश्मीरी मुसलमान यह मानते थे कि महाराजा हरि सिंहकी नीतियां उनके खिलाफ पक्षपाती है. अंततः 1931 विद्रोह भड़क उठा, आगे शेख मुहम्मद अब्दुल्ला के राजनीतिक पदार्पण के साथ, जम्मू-कश्मीर की पहली प्रमुख राजनीतिक पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस  की स्थापना हुई थी। महाराजा नीतियों के विरोध मे शेखअब्दुला कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया था।

 


भारत का विभाजन और राजनीतिक एकीकरण:


आजाद भारत 15 अगस्त 1947 में, भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्ति की घोषणा की, उसी के साथ भारत को एक बड़ा डंस भी झेलना पड़ा, भारत का विभाजन हो गया और पाकिस्तान, एक मुस्लिम बहुल देश, की स्थापना हुई।बंटवारे से पहले हिंदुस्तान में 579 रियासतें थीं। 1947 भारत के अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र आते थेः

ब्रिटिश भारत के क्षेत्र

देसी राज्य 

फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र

भारत की रियासतें, जो औपचारिक रूप से भारत या पाकिस्तान से संबद्ध नहीं थीं लेकिन उन राजावो को ब्रिट्रिश हुकूमत ने कोई देश की मान्यता भी नहीं दिया था, देसी राजावो के पास तीन विकल्प थे: स्वतंत्र रहें या दो देशों में से एक में शामिल हों। लेकिन ब्रिटेन स्पष्ट कर दिया कि ब्रिटेन स्वतंत्र रियासतों में किसी को भी अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देगा। और भारत में अंग्रेजों के अंतिम वायसराय लुइस माउंटबेटन ने बंटवारे के दौरान सभी राज्यों और रियासतों को यह सलाह दी कि वे भौगोलिक स्थिति के अनुकूल भारत या पाकिस्तान साथ मिल जाएं। साथ ही उन्हें चेतावनी दी गई कि 15 अगस्त 1947 के बाद उन्हें ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलेगी। अधिकांश राजाओं ने इस सलाह को मान लिया। लेकिन कुछ राजा इसके खिलाफ थे।

आजादी के बाद भारत 565 देशी रियासतों में बंटा था। ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थीं जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर को छोड़कर 562 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी, जिसको भारतीय संध में शामिल कर लिया गया। 

आजाद भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और वीपी मेनन की कूटनीतिक एवं कठोर परिश्रम से तीनों  रियासतों  जूनागढ़, हैदराबाद और भोपाल का मसला सुलझा लिया। कश्मीर मसला सरदार बलभ भाई पटेल के हाथ में नहीं था। कश्मीर के तात्कालिक महाराजा हरिसिंह ने भारत और पाकिस्तान में से किसी के साथ न जाने का और स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया और महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के साथ एक ठहराव समझौते पर हस्ताक्षर किया था. 

ठहराव समझौता:- यह समझौता महाराजा हरिसिंह ने पाकिस्तान से किया था इस समझौते में  महाराजा  हरिसिंह ने किसीभी के साथ न जाने का निर्णय किया था और एक स्वतंत्र देश के रूप में रहूँगा 


भारत में कश्मीर का विलय:
महाराजा हरिसिंह ने कहा की मई भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ दोस्ताना संबंध कायम रखना चाहते हूँ। महाराजा की महत्वाकांक्षा कश्मीर को स्विट्जरलैंड बनाने की थी। लेकिन महाराजा हरिसिंह की यहाँ इच्छा पूरी नहीं हो सकी क्यों की 22 अक्टूबर 1947 पाकिस्तान की तरफ से कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया और कश्मीर की सीमा में प्रवेश करते ही हथियारबंद कबायलियों ने राज्य पर आक्रमण कर दिया। 

पाकिस्तानी सेना कबायलियों साथ थी। जब कबायलियों की फौज श्रीनगर की ओर बढ़ी तो हिंदुओं की हत्या और उनके साथ लूटपाट मचाने लगे, कबायलियों और कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना कुछ समय  बारामूला में रुकर लूट पाट और कत्लेआम इतना ब्यस्त  होगये की, श्रीनगर पहुंचने में कुछ वक्त लगा, सिर्फ पांच दिनों में पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर के काफी पास आ गए थे, श्रीनगर से सिर्फ 25 मील ही दुरी ही रह गई थी,  तब महाराजा हरिसिंह  को लगा की अब इनको रोक पाना हमारी फ़ौज के बस की बात नहीं तो, तत्काल राजा हरि सिंह 25 अक्टूबर को  श्रीनगर छोड़ कर जम्मू चले गये गए ,महाराजा हरि सिंह ने भारत से मद्दद लेनेका का विचार किया। 

रोचक तत्थय:

‘मैं सोने जा रहा हूं. कल सुबह अगर तुम्हें श्रीनगर में भारतीय सैनिक विमानों की आवाज़ सुनाई न दे, तो मुझे नींद में ही गोली मार देना.’ यह बात आज से ठीक 70 साल पहले, 26 अक्टूबर 1947 की रात जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने अपने अंगरक्षक कप्तान दीवान सिंह से कही थी.


26 अक्टूबर 1947 हालात ऐसे थे कि किसी भी वक्त कश्मीर की राजधानी पर हमलावरों का कब्जा हो सकता था. महाराजा हरी सिंह भारत से मदद की उम्मीद लगाए बैठे थे. ऐसे में लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार पटेल को सलाह दी कि कश्मीर में भारतीय फौज भेजने से पहले महाराजा हरी सिंह से इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करवा कर ही भारती फौज को कश्मीर में भेजना चाहिए, क्युकी  नियम के अनुसार कश्मीर भारतीय संध का हिंसा नहीं है, अगर आप इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर राजा हरिसिंह के हस्ताक्षर करवालेते है तो कश्मीर भारतीय संध का हिंसा माना जायेगा और ब्रिटिश अधिकारी भारतीय फ़ौज के साथ जा सकते है नहीं तो नहीं जा पाएंगे।

उधर कश्मीर में कबालिय फ़ौज लूट - पाट  करते हुए श्रीनगर  के तरफ बहुत तेजी से बढ़रही  थी, और महाराजा हरि सिंह यह बात भलीभात समझ चूके थे की किसी भी वक्त कबालियों  के भेष में पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर पर कब्ज़ा कर सकते है और इस कठिन परिस्थिति में केवल भारत ही मदद कर सकता है. तत्काल महाराजा हरि  सिंह ने भारत से मदद पेशकस की, महाराजा हरि सिंह को भारत की तरफ से बताया गया की बिना इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किये भारतीय फ़ौज आप की मदत नहीं कर सकती, वीपी मेनन महाराजा हरि सिंह को कश्मीर के विलय के लिए इंस्टूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करने को कहा इसतरह 26 अक्टूबर 1947 को जम्‍मू-कश्‍मीर के आखिरी डोगरा सम्राट राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्‍ताक्षर कर दिया।भारत एक दिन बाद यानि 27 अक्‍टूबर 1947 की अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही भारतीय फ़ौज कश्मीर के लिए रवाना हो गई. और भारतीय विमान कश्मीर की हवाई पट्टी पर सेनिको को एयर लिफ्ट करने लगी, काबलियो को रोकने के लिए भारतीय फ़ौज ने तुरंत एक्शन लिया 

 27 अक्टूबर 1947 भारत-पाक_युद्ध

भारत ने कश्मीर का लगभग दो-तिहाई नियंत्रण प्राप्त कर लिया, भारत सरकार को पाकिस्तान के निंदनीय आक्रमण से लंबे समय तक जूझना पड़ा। अंत में लॉर्ड माउण्टबेटन के अनुरोध पर इस मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता की विनती का निर्णय लिया गया और सरदार वल्लभ भाई पटेल व्यक्तिगत रूप से इससे सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि राष्ट्र संघ मामले को लंबा खींचेगा और फिर भी शिकायत रखनी ही है तो भारत वादी की बजाय प्रतिवादी बने। लेकिन बाद में यह मामला नेहरूजी के अधीन विदेश मंत्रालय में चला गया। गोपाल स्वामी अय्यंगार उनके परामर्शदाता थे। सरदार बाक़ी मामलों की तरह इस बार भी नेहरूजी का सम्मान करते हुए चुप हो गए।

नेहरूजी का संयुक्त राष्ट्र जाना और युद्ध  युद्ध विराम
३१ दिसम्बर १९४८ में औपचारिक युद्ध विराम की घोषणा हो गयी।
लड़ाई के दौरान में भारतीय प्रधानमंत्री ने मामले को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ले जा कर उनके द्वारा मामले का समाधान करवाने का मन बना लिया। 31 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र के द्वारा युद्ध विराम की घोषणा की गई। युद्ध विराम होने से कुछ दिनों पहले पाकिस्तानी सेना ने एक प्रतिआक्रमण करके उरी और पुंछ के बीच के रास्ते पर कब्जा करके दोनो के बीच सड़क संपर्क तोड़ दिया। एक लंबे मोलभाव के बाद दोनो पक्ष युद्धविराम पर राजी हो गये। इस युद्धविराम की शर्तें अगस्त 13, 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने अपनाया। इसमे पाकिस्तान को अपने नियमित और अनियमित सनिको को पूरी तरह से हटाने और भारत को राज्य में कानून व्यवस्था लागू करने के लिये आवश्यक सैनिक रखने का प्रस्ताव था। इस शर्त के पूरा होने पर जनमत संग्रह करके राज्य के भविष्य और मालिकाना हक तय करने का निर्धारण होता। और इस युद्ध के बाद भारत का रियासत के साठ प्रतिशत और पाकिस्तान का ४० प्रतिशत भूभाग पर कब्जा रहा।


महाराजा हरि सिंह बने रहे राज्य के संवैधानिक प्रमुख

भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक संबंध को लेकर बातचीत की. इसी के तहत राज्य के संवैधानिक प्रमुख के रूप में बरकरार रही, लेकिन शेख अब्दुल्ला का आपातकालीन प्रशासक के पद पर नियुक्त कर राज्य में सरकार चलाने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी गई. इसके बाद 05 मार्च 1948 को राज्य का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया.

27 मई 1949 को पास हुआ था आर्टिकल 370

  जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला को 17 मई 1949 को वल्लभभाई पटेल और एन. गोपालस्वामी आयंगर की सहमति से लिखे एक पत्र में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी यही बात दोहराई थी. और विलय के वक्त जम्मू-कश्मीर सरकार ने जो ड्राफ्ट तैयार किया था. उस पर सहमति बनाने के लिए करीब पांच महीने तक बातचीत चलती रही. इस मीटिंग के नतीजे में बाद में संविधान के अंदर आर्टिकल 370 को जोड़ा गया. आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने राज्य में 35 ए लगाने की अनुमति दे दी. 1954 में जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान बना. उसके बाद धीरे-धीरे कश्मीर से राजवंश गायब होता चला गया.  27 मई 1949 को आर्टिकल 306 A पारित कर दिया गया. जिसे बाद में 370 के नाम से जाना गया. 

 अनुच्छेद 370 में जिस अनुच्छेद 1 का उल्लेख है. उसी के जरिए जम्मू कश्मीर को भारत के राज्यों की सूची में शामिल किया गया है.

अनुच्छेद 1 ने जम्मू-कश्मीर को भारत का राज्य घोसित करता है , जबकि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया।


8 Comments

  1. अति सुन्दर साइड हैं इसे आने वाले वंशज पढ़ाए

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  2. आप के इस साइड से बहुत ही महत्व पूर्ण जानकारी मिला

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  3. भारत का पहला साइड है इससे अच्छा कोई दूसरा साइड नहीं हो सकता

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