1857- Mangal Pandey मंगल पांडे

 1857 की क्रांति और मंगल पांडे 

194 वि. जयन्ती

MANGAL
Mangal Pandey

भारतीय इतिहास के प्रथम विद्रोह के जननायक वीर सपूत मंगल पांडे - उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की धरती के वो वीर सपूत थे जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के खिलाफ जो विद्रोह की चिंगारी फुकी धीरे धीरे कंपनी सरकार की जड़े हिला कर रख दी, इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाँथ से सत्ता निकल गई और भारत की शासन बागडोर ब्रटिश महारानी बिक्टोरिया ने अपने हाथ में ले लिया। मंगल पांडे तो नहीं रहे, पर अग्रेजो के खिलाफ देश में क्रांति की ज्वाला खड़ी कर गए।  ऐसे भारत माँ के विरसपूत, मंगल पांडे जी का आज जन्म दिवस है। 29 मार्च 1857  का विद्रोह - स्वतंत्रा के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ 

मंगल पांडे जन्म: आज ही के दिन भारत के वीर सपूत मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827  बलिया के नगवा गाँव में हुआ था, जो भारत के उत्तर प्रदेश का एक जिला है बलिया।

परिवारिक परिचय: मंगल पांडे का जन्म एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इनके पिता दिवाकर पांडे और माता अभय रानी, मंगल बचपन से साहसी और निडर स्वाभाव के थे, परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रह था, इसको देखते हुए मंगल पाण्डे ने ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाही की नौकरी करना स्वीकार कर लिया। 22 साल की उम्र में 1849 में ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी करली।

ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में नौकरी: मंगल पांडे 1849 बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही थे, जो कलकत्ता के पास पड़ता है, जिस समय मंगल पांडे सेना में कार्यरत थे उसी समय बंगाल यूनिट में सिपाहियों को पैटर्न 1853 एनफील्ड बन्दुक दी गई जो की 0.577 कैलिबर की बन्दुक थी, जो की पुरानी और कई दसक से उपयोग में लाइजाने वाली ब्राउन बेस के मुकाबले अधिक शक्तिसाली और अचूक मारक क्षमता थी, नई बन्दुक में आधुनिक प्रणाली विकसन कैप का प्रयोग किया गया था लेकिन गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी, कारतूस के बाहरी आवरन में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग होता था जो की कारतूस को सिलहन से बचाती थी, नई एनफील्ड बन्दुक में कारतूस डालने से पहले इसको दातो से चबा कर खोलना पड़ता था नए कारतूस के विषय में एक बात फ़ैल गई की इसमें गाय और सूअर की चर्बी लगाई गई है, जब यह बात सेना के सिपाहियों बीच पहुंची तो सेना में धीरे धीरे अंग्रेजो के विरुद्ध असंतोष ब्याप्त होने लगा, अंग्रेजी सेना में हिन्दू, मुस्लमान दोनों थे उनको लगा की अंग्रेजी सरकार हम भारतीयों का धर्म भ्रस्ट करना चाहती है एक तो पहले से भारतीय सेनिक भेदभाव के शिकार हो रहे थे, जिससे उनमे ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष भरा हुआ था, उपरसे सूअर और गाय की चर्बी लगी कारतूस की बात आग में घी काम किया। 

चर्बी युक्त कारतूस से इंकार: मंगल पांडे और उनके साथियों ने बेहरामपुर 26 फरवरी 1857 यह कह के कारतूस का प्रयोग करने से इंकार कर दिया की इसमें गाय और सूअर की चर्बी लगी है, कारतूस का प्रयोग न करने से अंग्रेज अधिकारी ने भारतीय सिपाहियों की भावना का ध्यान न देकर उनके ऊपर क्रोधित हुए और कोर्ट मार्शल करने के लिए बेहरामपुर से मंगल पांडे और उनके साथियों को बैरकपुर ले गए जहा भारतीय सिपाहियों को निचा दिखाया गया इससे मंगल पांडे और उनके साथी और आक्रोशित हुए। 

29 मार्च बैरकपुर छावनी: बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे और उनके साथी सिपाहियों को बेइज्जत करते हुए अंग्रेजों ने हथियार छीन लेने व वर्दी उतार लेने का हुक्म दिया तो मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसर का हुक्म मानने से इंकार करते हुए अपने साथी सिपाहियों को एक जुट हो कर साथ देने के लिए ललकारते हुए परेड ग्राउंड में आगये, लेकिन साथी सिपाही इतना डरे हुए थे की मंगल पांडे का साथ देने की हिम्मत नहीं जूटा पाए, अंग्रेज अफसर सार्जेंट मेजर ह्यूसन ने देखा की मंगल पांड़े हुक्म नहीं मान रहे तो उसने मंगल को गिरफ्तार करने के लिए खुद आगे बढ़ा और तभी मंगल पांड़े ने सार्जेंट मेजर ह्यूसन पर गोली चला कर घायल कर दिया और नारा देने लगे (मारो फिरंगी को ) तभी दूसरा अफसर अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पूरी घटना को सुन कर परेड ग्राउंड पहुंचा वो घोड़े से उतर भी  नहीं पाए थे की मंगल ने दूसरी गोली दाग दिया जो की सीधे अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग को लगी और वो वही ढेर हो गए। मंगल पांडे का रौद्र रूप देख कर कोई भी उनके करीब जाने का साहस नही जूटा पाया, अकेले ही मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसर और सिपाहियों के छक्के छुड़ा दिए, अंत में मंगल पांडे को काबू में करने के लिए, अंग्रेज अफसरों की पूरी एक कंपनी सैनिक वहाँ पहुँची यह देख मंगल पांडे को लगा की अंग्रेजो के हाँथ मरने से और पकड़े जाने से अच्छा खुद को गोली मार लू। और उन्होंने अपनी ही बंदूक के आखरी बची गोली से खुद को गोली मारली पर गोली लगने से मंगल पांडे घायल होकर बेहोश हो जमीन पर गिर गए। अंग्रेज अफसर इतने भयभीत थे की मंगल पांडे जिन्दा हैं की मर गये यह देखने के लिए हवलदार पल्टू को भेजा और जब मंगल पांडे के बेहोश होने की पुस्टि हुई उसके बाद मंगल को गिरफ्तार कर लेजाया गया।

मंगल पांडे फांसी अमर शहीद हो गए मंगल: मंगल पांडे को अस्पताल भर्ती  किया गया और ठीक होने के बाद उनका कोर्ट मार्शल किया गया, उनके ऊपर  साथी सिपाहियों को भड़काने और अंग्रेज अफसर की हत्या और घायल करने का आरोप लगाकर मंगल पांडे को फांसी की सजा सुनाई गई। 18 अप्रैल 1857 को फांसी देने समय निर्धारित हुआ, लेकिन मंगल पांडे की फांसी की खबर सुनने के बाद कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुस्सा भड़क गया, जिसे देखते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को न देकर दस दिन पहले 8 अप्रैल 1857 को  फांसी पर चढ़ा दिया। भारतवासियों के दिलो में अमर हो गये। 

मेरठ में विद्रोह: मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही 10  मई 1857 को मेरठ की छावनी में सैनिक विद्रोह की चिंगारी फूटपड़ी। 1857 का विद्रोह देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया। इसी के साथ ईस्ट इण्डिया कपनी के हाँथ से भारतीय सत्ता ब्रिटिश गोरमेंट के हाँथ चली गई और महारानी विक्टोरिया भारत की महारानी बनी और भारत में प्रथम गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स का आगमन हुआ, इसके बाद ही हिन्दुस्तान में 34 हजार 7 सौ 35 अंग्रेजो का कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गए। 

भारतीय प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में 1857 के विद्रोह की भूमिका का बहुत ही महत्व पूर्ण स्थान है,  यह चिंगारी 1858  आते - आते दबा दिया गया और ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे सैनिक विद्रोह करार दिया। जबकी इतिहासकार मानते है की 1857 विद्रोह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगो में गुस्सा, नाराजगी, नफरत और अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति करने का हौसला बढ़ा दिया।

प्रमुख विद्रोह और क्रांति: नाना  साहब, रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हज़रत महल, कुंवर सिंह, तात्या टोपे, खान बहादुर, जनरल बख्त खान, गजाधर सिंह इत्यादि। ने अंग्रेजो के खिलाफ खुल कर मोर्चा खोला,

दिल्ली के अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र की 1857 की क्रांति में अहम् भूमिका थी, आजादी की प्रथम लड़ाई को पूरी तरह कुचलने के लिए अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह को रंगून में  नजर बंद कर दिया।

मंगल पांडे को जल्लादों ने फांसी देने से किया इंकार तो बुलाना पड़ा कोलकाता से जल्लाद।

मंगल पण्डे का नारा: मारो फिरंगी को। 

अमर शहीद मंगल पांडे के सम्मान में: भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार ने 5 अक्टूबर, 1984 को उनके नाम से डाक टिकट जारी किया था। 

शहीद स्मारक: मंगल पांडे की याद में मेरठ में शहीद स्मारक परिसर में मंगल पांडे की मूर्ति स्थित है

11 Comments

  1. मंगल पांडे हमारे देश के वीर सपूत थे

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  2. मंगल पांडे हमारे देश के वीर सपूत थे

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  3. मंगल पांडे हमारे देश के वीर सपूत थे

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  4. मंगल पांडे हमारे देश के वीर सपूत थे

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  5. उनके बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा

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  6. Great revolutionary, on his birthday, salutations

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  7. Great man revolutionary salute

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  8. मंगल पाण्डेय ने देश के लिए जो भी बलिदान दिए इसके लिए कोटि कोटि नमन

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  9. मंगल पाण्डेय जैसे देश भक्त को सत सत नमन

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  10. मंगल पाण्डेय जैसे देश भक्त को सत सत नमन

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  11. Very nice pratham independence 1847

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