वाराणसी का इतिहास, Varanasi History

प्राचीन नगरी काशी या वाराणसी 

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BHU Varanasi

धार्मिक पहचान- वाराणसी (काशी) गंगा तट पर बसी पौराणिक नगरी है।  वाराणसी को काशी या बनारस भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना  भगवान शिव ने लगभग 5००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण आज यह एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। हिन्दुओं की पवित्र धर्म स्थलों में से एक है। स्कन्द पुराण, शिवपुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद में वाराणसी (काशी नगर) का उल्लेख मिलता है। 

आदिकेशव मंदिर,यहां भगवान विष्णु भी करते है निवास, शिव जी के कहने पर भगवान विष्णु लक्ष्मी जी के साथ वरुणा+गंगा संगम पर आदिकेशव के नाम से निवास करते इसे प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है।
वाराणसी में लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए भी कल्पवास  करते है। 

वाराणसी, हिन्दू धर्म के अतिरिक्त बौद्ध धर्म, जैन धर्म और कबीर पंथ, मुख्य तीर्थो मेसे एक है। वाराणसी में भगवान गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रथम उपदेश दिया तो जैनों धर्म का भी मुख्य तीर्थ है, जैन धर्म के श्री पार्श्वनाथ भगवान का जन्म स्थान वाराणसी है। यह कबीर दास जी की जन्म स्थली है - कबीर जी को ज्ञान प्राप्ति काशी में हुआ था, कबीर पंथ के लिए भी धार्मिक महत्व है वाराणसी का।

आदिकाल से वाराणसी ब्यापार का औद्योगिक केन्द्र रहा, धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र था।

गंगा घाट और इनकी महानता: वाराणसी में गंगा नदी के किनारे बने हर एक घाटों की अपनी एक अलग ही कहानी है,सभी घाटों की अपनी एक अलग पहचान और पौराणिक कथावो से भरे हुए है, कुल घाटों की संख्या 88 है, इनके नाम- 1-अस्सी घाट, 2-ललिता घाट, 3-सिंधिया घाट, 4-तुलसी घाट, 5-हरिश्चंद्र घाट, 6-मुंशी घाट, 7-जैन घाट, 8-अहिल्याबाई घाट, 9-केदार घाट, 10-चेतसिंह घाट, 11-निरंजनी घाट, 12-गंगा महल घाट, 13-रीवा घाट, 14-प्रयाग घाट, 15-दशाश्वमेघ घाट, 16-राजेंद्र प्रसाद घाट,17-शीतला घाट, 18- शिवाला घाट,19-मणिकर्णिका घाट, 20-तुलसी घाट, 21-पंच गंगा घाट, 22-जानकी घाट, 23-जैन घाट, 24-दुर्गा घाट, 25-भदैनी घाट, 26-ब्रह्मा घाट,  27-निषाद घाट, 28-पंचकोटा घाट, 29-माता आनंदमाई घाट, 30-बछराज घाट, 31-प्रभु घाट, 32-महानिर्वाणी घाट, 33-दंडी घाट, 34-प्राचीन हनुमान घाट, 35-पक्का घाट, 36-रीवाँ घाट, 37-कर्णाटक घाट, 38-विजयनगरम घाट, 39-मानसरोवर घाट, 40-नारद घाट, 41-खोरी घाट, 42-राणा महल घाट, 43-मुंशी घाट, 44-दरभंगा घाट, 45-मानमंदिर घाट, 46-त्रिपुरा भैरवी घाट,47- नेपाली घाट, 48-मीर घाट, 49-अमरोहा घाट, 50-संकठा घाट, 51-नया घाट, 52-मेहता घाट, 53-गणेश घाट, 54-भोंसले घाट, 55-रामा घाट, 56-राजा ग्वालियर घाट, 57-वेणीमाधवा घाट, 58-जलसाई घाट, 59-मंगला गौरी घाट, 60-बूंदी परकोटा घाट, 61-लाल घाट, 62-गाय घाट, 63-बद्री नारायण घाट, 64-त्रिलोचन घाट, 65-तेलियानाला घाट, 66-गोला घाट, 67-नंदेश्वर घाट, 68-फूटा घाट, 69-प्रह्लाद घाट, 70-भैसासुर राज घाट, 71-आदिकेशव घाट, 72-मैसूर घाट , 73 -रानी घाट, 74-अग्नीश्वर घाट, 75-गुलेरिया  घाट, 76-लल्ली घाट, 77-चौकी घाट, 78-नरवा घाट,  79-वरुणा संगम घाट, 80-धोबिया घाट, 81-नवला घाट,  82-सोमेश्वर घाट, 83-राजा घाट, 84-बाजीराव घाट, 85-दिग्पतिया घाट, 86-अक्रूर घाट, 87-मानसरोवर घाट  88-बाभाजी घाट. क्रमशः रविदास घाट है. इनमे से  अधिकांश घाटों का उपयोग पूजा पद्धित एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए और स्नान ध्यान के लिए किया जाता है, जब की कुछ घाटों का धार्मिक महत्व है। 

दशाश्वमेघ घाट: पर प्रतिदिन शाम को गंगा आरती के लिए प्रशिद्ध है यहाँ की गंगा आरती बहुत ही मनमोहक होती है, शाम को गंगा आरती देखने के लिए भारी भीड़ एकत्रित होती है, दशाश्वमेघ का एक धार्मिक मान्यता भी है कहा जाता है की यहाँ ब्रह्मा जी ने दस अश्वमेघ यज्ञ किये थे इसी लिए दशाश्वमेघ नाम पड़ा, घाट पर स्थित शीतला मंदिर और आस पास में अगस्त्यकुंड और सोमनाथ मंदिर और सामने माँ गंगा की अविरल धारा बहती है। 

अस्सी घाट. वाराणसी शहर के दक्षिण में है यहाँ अस्सी नदी गंगा में आकर मिलती है और इसको गंगा अस्सी का संगम माना जाता है, सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते है।

हरिश्चंद्र घाट: हरिश्चंद्र घाट का ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों महत्त्व है, इस घाट का नाम सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम पर पड़ा था, जब राजा ने अपना सब कुछ दान कर दिया था तो इसी घाट पर कल्लू डोम के यहाँ चिता जलाने की नौकरी की थी वह इतने सत्यवादी और न्याय प्रिय थे की जब साँप काटने से उनके बेटे रोहित की मृत्यु हो गई और उनकी पत्नी तारा जब शव लेकर श्मशान घाट आई तो बिना कर लिए अपने बेटे को भी चिता जलाने की अनुमति नहीं दिए, हरिश्चंद्र घाट अब अत्य आधुनिक घाट है यहाँ विधुत स्वचालित शवदाह गृह की सुविधा है, यहाँ लकड़ी और विधुत दोनों तरह से शवदाह किया जाता है 

मणिकर्णिका घाट: हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व पूर्ण अस्थान है यहाँ माँ पार्वती का कर्णफूल गिरा था, इसलिए इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा हिन्दू धर्म के मान्यता के अनुसार इसे महाश्मशान कहते है कहा जाता है यहाँ की चिता की अग्नि कभी बुझी नहीं है, मणिकर्णिका घाट पर  दिन रात और 24 घंटे शवों का दाह संस्कार किया जाता है. जब की हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक सिर्फ दिन में ही दाह संस्कार किया जा सकता है लेकिन मणिकर्णिका ऐसा स्थान है जहा यह मान्यता लागु नहीं होती, मान्यता है की मणिकर्णिका पर दाह संस्कार करने से सीधे मोच्छ .प्राप्ति होती है, यहाँ देश के ही नहीं विदेशी सैलानी भी भ्रमण करने आते है, यहाँ चिता की राख से होली खेली जाती है, मणिकर्णिका कुंड और उत्तर में काशी करवट के नाम से एक मंदिर है।

RAM NAGAR FORT
रामगर किला 
काशी नरेश का इतिहास: काशी रियासत में नारायण वंश प्रभुत्व था 1000 ई से 1947 तक बनारस पर शासन करने वाला वंश था, जिसे नारायण वंश के नाम से जाना जाता है। इस वंश के सभी राजा भूमिहार थे इन्हे भूमिहार ब्राह्मण भी कहते थे। रामनगर किला ही इस राजवंश के इतिहास का शासन स्थली रही । वाराणसी की जनता काशीनरेश को शिव का अवतार मानते हैं। काशी नरेश काशी के सभी प्रमुख सांस्कृतिक धार्मिक आयोजनों के मुख्य संरक्षक तथा आवश्यक अंग होते थे और आज भी है। काशी के राजवंश की शुरुआत मनसा राम 1737 से सुरु होता है, और विभूति नारायण 1947 तक, कशी नरेश के जीवन काल में ही वाराणसी स्टेट का विलय 1948 को भारतीय संध में हो गया। मनसा राम का राज शाही इतिहास नहीं था जिससे उनको राजा कहा जाये वाराणसी और आस पास इलाको के जमींदार थे, और अवध के नबाब के मातहत थे, लेकिन मनसा राम अपने पुत्र बलवंत सिंह को 1740 राजगद्दी दिलाने में कामयाब हो गए थे, यही से सुरु होती है नारायण वंश की, काशी नरेश बनाने की कहानी।

बलवंत सिंह 1740 से 1770, चैत सिंह 1770 से 1780, महीप नारायण सिंह 1781 से 1794, महाराजा उदित नारायण सिंह 1795 से 1835, महाराजा ईश्वरी नारायण सिंह बहादुर 1835 से 1889, लेफ़्टिकर्नल महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह बहादुर 1889 से 1931, कैप्टन महाराजा श्री सर आदित्य नारायण सिंह 1931से1939, डॉ॰विभूति नारायण सिंह 1939से1947

राजा बलवंत सिंह 1740 में रामनगर किले का निर्माण कराया और राम नगर को अपनी राजधानी घोसित किया और राजनीतिक सूझबूझ से एवं शौर्य पराक्रम के साथ-साथ धर्मनिष्ठ शासक और प्रजा पालक थे। 

महाराजा चेत सिंह का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था इनका शासन कुल 10 वर्ष रहा वह एक शूरवीर शासक थे, इनके समय में प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने काशी  पर प्रथम आक्रमण किया और महाराजा चेत सिंह से हार गया, लेकिन कुछ समय बाद इसने पुनः चढ़ाई किया और इस युद्ध में राजा चेत सिंह को हार सामना करना पड़ा और जान बचाकर ग्वालियर पहुंचे और ग्वालियर नरेश ने इनको शरण दिया। 

महीप नारायण सिंह को 1781 ईस्टइंडिया कंपनी ने काशी की गद्दी पर बैठाया, महीप नारायण सिंह- महाराजा चेत सिंह के भांजे थे। 

महाराजा उदित नारायण सिंह 1795 काशी नरेश बने ये महिप नारायण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। रामनगर रामलीला का श्रेय इन्ही को जाता, इन्होंने 1830 रामनगर की ऐतिहासिक रामलीला शुभारम्भ किया, रामनगर की रामलीला का एक अलग ही स्थान है, 1830 लगा तार प्रत्येक वर्ष आयोजित होती है। राजा उदित नारायण सिंह का वाराणसी की संस्कृति में बड़ा योगदान रहा।

महाराजा श्री ईश्वरी नारायण सिंह बहादुर 1835 राज गद्दी पर आसीन हुए, इनको अंग्रेजी हुकूमत के प्रति वफादार रहने की वजह से इन्हें 1859 में महाराजा बहादुर की उपाधि प्रदान की गई

लेफ़्टि कर्नल महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह बहादुर 1889 में काशी नरेश बने इनके मृत्यु के बाद इनके  पुत्र - कैप्टन महाराजा श्री सर आदित्य नारायण सिंह 1931में काशी नरेश बने, महाराजा आदित्य नारायण सिंह के देहावसान के पश्चात उनके दत्तक (गोद लिए गए थे) पुत्र विभूति नारायण सिंह 1939 काशी नरेश की गद्दी पर आसीन हुए।

 

विभूति नारायण सिंह का जन्म 5 नवंबर 1927 से 25 दिसंबर 2000, जब इनको गद्दी पर बैठाया गया ये नाबालिक थे इसलिए राज्य की कार्य व्यवस्था देखने के लिए कार्य समिति (working committee) गठन किया गया, काशी राज्य के अंतिम काशी नरेश थे, इसके बाद 15 अक्टूबर 1948 को काशी राज्य भारतीय संघ में शामिल होगया। 


काशी विश्वनाथ: काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंग 12 ज्योतिलिंगों में से एक है,और काशी का महात्म सबसे अधिक है, सभी धर्म स्थलों और धर्म ग्रंथो में काशी का अत्यधिक महत्त्व कहा गया है, काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंग बारहवें ज्योतिलिंगों में सातवाँ ज्योतिलिंग है, कहा जाता है की  प्रलय के समय भी काशी  का प्रलय नहीं होगा, कहते है की भगवान शिव ने इसे अपने त्रिसूल पर धारण किया है। काशी विश्वनाथ की दिन में पांच बार आरती की जाती है। सुबह के पहर मंगला आरती के साथ दिन में चार बार आरती का विधान है। बनारस में काशी विश्‍वनाथ मंदिर के निकट ही माता अन्नपूर्णा  का मंदिर है. इन्‍हें तीनों लोकों की माता माना जाता है. कहा जाता है कि इन्‍होंने स्‍वयं भगवान शिव को आशीर्वाद दिया था की वाराणसी निवास करने वाला कभी भूखा नहीं सोयेगा और माता अन्नपूर्णा ने भगवान शिव को अपने हाथो से भोजन खिलाया था। 

काशी विश्वनाथ का सर्व प्रथम जीर्णोद्धार (Rejuvenation) इग्यारहवीं शताब्दी में राजा हरिचन्द्र और विक्रमादित्य द्वारा कराये जाने का उल्लेख मिलता 

विदेशी आक्रांता के आक्रमण: से वाराणसी भी अछूता नहीं रहा वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने काशी विश्वनाथ मंदिरको विध्वंश और लूट पाट किया, जिसे एक बार पुनः निर्माण करवाया गया जिसे 1447 में सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया जो की जौनपुर का  सुल्तान था, एक बार पुनः इस मंदिर के  जीर्णोद्धार (Rejuvenation) करने का उल्लेख मिलता की 1585 में राजा टोडरमल की सहायता पण्डित नारायण भट्ट ने कीया था। मुगल शासक औरंगजेब ने एक बार पुनः मंदिर को ध्वस्त किया और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया।

वर्त्तमान में जिस सरचना या बनावट (structure) को हम सभी देख रहे है उसका जीर्णोद्धार (Rejuvenation) इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने 1777 से 1780  ई. में करवाया और मंदिर पर जो स्वर्ण शिखर दिख रहा उसे पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 22 मन शुद्ध सोने द्वारा शिखर कलश को स्थापित करवाया गया था।

काशी के कोतवाल: भैरव जी को काशी का कोतवाल कहा जाता है। काशी बाबा विश्‍वनाथ के दर्शन से पहले भैरव जी  दर्शन करने का विधान है, तभी दर्शन का महत्व माना जाता है। उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई है, भगवान शिव का जो रुधिर बहा उसके दो भाग हो गए थे  पहला बटुक भैरव के नाम से जाना जाता है और दूसरा काल भैरव के नाम से। मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव।काल भैरव विश्वेश्वरगंज, वाराणसी में और बटुक भैरव रथयात्रा कामाच्छा रोड महाराणा प्रताप कॉलोनी में विराजमान है।

दुर्गाकुंड: में विराजमान है माँदुर्गा: यहाँ माँ दुर्गा माता कुष्माण्डा रूप में पूजी जाती है, असुरों के वध करने के बाद माँ दुर्गा ने यहाँ विश्राम किया था, इस मंदिर का निर्माण 1760 में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था, मंदिर के बगल में ही प्रत्येक वर्ष सावन महिने में एक माह तक चलने वाला ऐतिहासिक मेला लगता है, मदिर के नजदीक ही आनंद पार्क है, आनंद पार्क में ही काशी के विद्वानों के साथ आर्य समाज का सास्त्रार्थ हुआ था।

दुर्गाकुंड से लंका BHU मार्ग पर मानस मंदिर है, जिसे तुलसी मानस मन्दिर कहते है इस मंदिर में हनुमानजी को रामायण पढ़ते दिखाया गया है श्री राम माता जानकी लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी सहित  विराजमान है, बगल में ही  सत्यनारायणजी (स्वामी नारायण) का मन्दिर है, इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखा गया है।

संकट मोचन: हनुमान मंदिर में प्रभु राम भक्त हनुमानजी विराज मान है, यह वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं।दुर्गाकुण्ड BHU मार्ग पर स्थित है, इसका निर्माण 1900 में पं.मदन मोहन मालवीय जी द्वारा किया गया था। हनुमानजी को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी में बने बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं।

शिक्षा क्षेत्र- विश्वविद्यालय की संख्या 4 :

1: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित है, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के परिसर में स्थित सर सुन्दरलाल चिकित्सालय एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालय और नया काशी विश्वनाथ  मंदिर भी विश्वविद्यालय प्रांगण में है। 1904  में पं॰ मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना किया, BHU से ही सम्बन्ध सेंट्रल हिन्दू स्कूल- गर्ल और बॉय कालेज है, राजीव गांधी दक्षिणी परिसर बरकच्छा मिर्जापुर, बसन्त कॉलेज राजघाट वाराणसी, डी.ए.वी. कॉलेज वाराणसी, वसन्त कन्या महाविद्यालय वाराणसी, आर्य महिला डिग्री कालेज चेतगंज वाराणसी, महिला महाविद्यालय लंका वाराणसी, इन सभी महाविद्यालय का सम्बन्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से है। 

2: सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, 3: महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, 4: केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय

वाराणसी की महान विभूतियाँ: वल्लभाचार्य, महर्षि अगस्त्य, उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ, धन्वंतरि, पार्श्वनाथ, पंडित रविशंकर, संत कबीर, पंडित मदनमोहन मालवीय, बाबा किनाराम, शंकराचार्य, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, लक्ष्मीबाई, जयशंकर प्रसाद, पाणिनी, संत रैदास, मुंशी प्रेमचंद, अयोध्यासिंह उपाध्याय, स्वामी रामानन्दाचार्य, रामचन्द्र शुक्ल, गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास, गौतम बुद्ध इत्यादि। 

प्रमुख नदियाँ:  वाराणसी में मुख्य रूप से गंगा मिलने वली नदी जो संगम बनाती है - वरुणा और अस्सी यह दोनों नदी गंगा में मिलती है, 1 वरुणा नदी जो आदिकेशव घाट के पास गंगा में मिलती है और गंगा वरुणा संगम बनता है , 2 अस्सी नदी जो अस्सी घाट के पास गंगा में मिलती है और अस्सी गंगा संगम बनता है, अस्सी नदी विलुप्त हो कर नाले में परिवर्तित है जिसके उद्धार का प्रयास सरकार कर रही है।

डोमराज की राजा बनने की कहानी  : राजा हरिश्चंद्र ने श्मशान में डोम की नौकरी किये थे और वो एक राजा थे इसीलिए डोम कार्य करने से डोमराज कहा गया, आगे चल कर राजा हरिश्चंद्र की वजह से डोम को डोमराज की उपाधि मिली, इस घटना के बाद से काशी में दो राजा हुए एक तो काशी नरेश जो राज्य की राजनीति देखते थे. वहीं दूसरे थे डोमराजा, जिनके अधीन श्मशान घाट की देख-रेख करते है, मान्यता यह है कि राजा आपको राजनीति से दंड देकर मुक्ति दे सकता है, लेकिन महाशमशान में डोमराज अग्नि देकर आपको प्रत्येक व्यसन से मुक्ति प्रदान करते है। 

पर्यटन स्थल: 
1-रोरो क्रूज,नौका विहार
2-गंगा आरती- 
3-प्रसिद्ध गंगा घाट
4-काशी विश्वनाथ मंदिर
5-सारनाथ
6-दुर्गा माता मंदिर
7-भारत माता मंदिर
8-आलमगीर मस्जिद
9-कथवाला मंदिर (नेपाली मंदिर)
10-संकटमोचन 
11-तुलसी मानस मंदिर
12-नया विश्वनाथ मंदिर
13-बनारस हिंदू विश्वविद्यालय
14-रामनगर का किला
15-आलमगीर मस्जिद


गौतम बुद्ध का प्रथम उपदेश: सर्व प्रथम सारनाथ में भगवान गौतम बुद्ध ने पाली भांषा में पाँच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। इनके पाँच शिष्यों के नाम कौण्डिन्य, वाप्य, भद्रिक, अश्वजित और महानाम थे। 


वाराणसी रेलवे स्टेशन:  वाराणसी कैंट जंक्शन रेलवे स्टेशन वाराणसी शहर का मुख्य रेलवे स्टेशन है, वाराणसी सिटी स्टेशन और मंडुआडीह रेलवे स्टेशन विकाश की पक्ति में अग्रणी हैं। 
वायुमार्ग: वाराणसी के बाबतपुर में लाल बहादुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा देश के विभिन्न प्रमुख हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है।


वाराणसी से विभाजित क्षेत्र: भदोही , चन्दौली, कभी वाराणसी के क्षेत्र हुआ करते थे। 1994 में भदोही जिला अस्तित्व में आया समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने वाराणसी से भदोही को अलग कर जनपद बनाया। वही वर्ष 1997 प्रशासनिक उद्देश्य के लिए चन्दौली जनपद को अस्तितव  लाया गया और वाराणसी जनपद से अलग करके चन्दौली जनपद बना

वाराणसी में विधानसभा सीटें: 1- वाराणसी उत्तरी, 2-वाराणसी दक्षिणी,  3- वाराणसी छवानी,  4-सेवापुरी विधान सभा,  5- रोहनिया, 6- शिवपुर, 7- अजगरा,  8-पिण्डरा

वाराणसी ब्लॉक: 1- आराजी लाइन ब्लॉक, 2- बड़ागांव ब्लॉक, 3- चिरई गांव ब्लॉक, 4- चोलापुर ब्लॉक, 5- हरहुआ ब्लॉक, 6- काशी विद्या पीठ ब्लॉक, 7- पिंडारा ब्लॉक 8- सेवापुरी ब्लॉक 

7 Comments

  1. well done ,nice detailed Information

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  2. काशी का जो अनुभव आप ने दिया वह अनुभव अति सुंदर हैं

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  3. Very good information is unique

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  4. वाराणसी एक एतिहासिक नगरी आप का बहुत बहुत धन्यवाद आप ने सभी तथ्यों को विस्तार से लिखा है एक जगह ही सभी जानकारी

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