Partition of Bengal, black day of India बंगाल का विभाजन

(Partition of Bengal)

BENGAL
India Bengal Partition
16 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन  बंग भंग का होना अग्रेजो के लिए अभिशाप  साबित हुआ  आंदोलनों के लिए इतनी बड़ी जमीन तैयार हुई , बंग भंग हुआ देश में मुस्लिम लीग स्थापना का कारण बना, और बंग भांग ने ही ऐसा खेल किया की राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हो गई, ये कहानी आप सब को जरूर पढ़नी चाहिए।

लॉर्ड कर्जन के तर्क
अंग्रेजी वायसराय लॉर्ड कर्जन के होम सेक्रेट्री हर्बर्ट ने 7 फरवरी और 6 दिसम्बर को जो 2 खत लिखे थे, उनका सीधा मतलब ये था, ‘संयुक्त बंगाल एक बड़ी ताकत है, बंटा हुआ बंगाल अलग-अलग दिशाओं में जाएगा.’ लॉर्ड कर्जन ने तर्क दिया कि बंगाल इतना बड़ा प्रांत है कि इसका प्रबंधन करना खासा मुश्किल है।

लॉर्ड कर्जन की कूटनीति
हालाँकि उसने बंगाल के विभाजन को प्रशासनिक दृष्टिकोण से आवश्यक बताया था लेकिन वास्तविकता यह थी कि बंगाल विभाजन उसकी प्रतिक्रियावादी नीति का ही परिणाम था. लॉर्ड कर्जन का तर्क था कि आकार की विशालता और कार्यभार की अधिकता के कारण बंगाल प्रांत का शासन एक गवर्नर के लिए संभव नहीं है. अतः उसने पूर्वी बंगाल और असम को मिलाकर एक अलग प्रांत बनाया जिसकी राजधानी ढाका रखी. वस्तुतः बंगाल विभाजन को ही बंग भांग कहा जाता है , का यह तर्क कर्जन का एक बहाना था. उसका वास्तविक उद्देश्य तो बंगाल की राष्ट्रीय एकता को नष्ट कर हिन्दुओं और मुसलामानों के बीच फूट डालना था. उसकी स्पष्ट नीति थी फूट डालो और शासन करो. उसने खुद कहा भी था कि “यह बंगाल विभाजन  केवल शासन की सुविधा के लिए नहीं की गई है बल्कि इसके द्वारा एक मुस्लिम प्रांत बनाया जा रहा है, जिसमें इस्लाम और उसके अनुयायियों की प्रधानता होगी.” इस प्रकार बंगाल का विभाजन  लॉर्ड कर्जन का धूर्तता और कूटनीति से भरा कार्य था. उस वक्त अंग्रेजों की बंगाल प्रेसीडेंसी में पश्चिम बंगाल, पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश)  बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के कुछ जिले और आसाम भी शामिल था, जो 1874 में अलग किया गया था।

बंगाल का विभाजन हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित किया था। बंगाल के मुसलमानों ने 1905 में बंगाल विभाजन का स्वागत किया था 

पूर्वी बंगाल में मुस्लिमों की धारणा थी कि एक अलग क्षेत्र उन्हें शिक्षा, रोजगार आदि के अधिक अवसर उपलब्ध कराया जएगा

जबकि पश्चिमी बंगाल के लोगों को यह बंटवारा पसंद नहीं आया  हिंदुओं ने इसका कड़ा विरोध किया और एक जन आंदोलन शुरू किया

16 अक्टूबर राष्ट्रीय शोक दिवस/काला दिवस
विभाजन के दिन 16 अक्टूबर, 1905 ई. को पूरे बंगाल में 'राष्ट्रीय शोक दिवस'(Black Day) के रूप में मनाने की घोषणा की गयी। रवीन्द्रनाथ टैगोर बंग भंग के विरोध में अमार सोनार बांग्ला, और बंकिम चंद्र चटर्जी का गीत ‘वंदेमातरम’. नारा बुलंद किया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने कहा था कि 'यह निर्णय हमारे ऊपर एक बज्र की तरह गिरा है।' विभाजन पर गोपाल कृष्ण गोखले ने कहा कि 'यह एक निर्मम भूल है।'बॉल गंगाधार तिलक ने कहा ''स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे लेकर रहूँगा। बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी अपनावो एवं बहिष्कार आंदोलन का सूत्रपात किया गया। धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे देश में फैलने गया। लोकमान्य तिलक, अजीत सिंह एवं लाला लाजपत राय, सैय्यद हैदर रज़ा  तथा चिदम्बरम पिल्लै ने पुरे राष्ट्र में प्रचार और आंदोलन को तीव्र धार दिया यह आंदोलन इतना वृहद हुआ की अहिंसक और हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगे, बंगाल  विभाजन के विरुद्ध स्वराज्य की मांगस्वदेशी अपनाने और बहिष्कार का संकल्प लिया गया 

नोट- इतना प्रबल विरोध हो रहा था फिर भी २० जुलाई १९०५  को वंग भांग का प्रस्ताव पर मुहर  लगा दी गई  और १६ अक्टूबर १९०५  में बंगाल को दो टुकटे में बिभाजित कर दिया गया.

बंगाल विभाजन भारत विभाजन में महत्व पूर्ण भूमिका 
बंगाल का विभाजन भारतीय इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाया, बंगाल का विभाजन प्रांतीय विभाजन ही नहीं देश के बंटवारे के लिए रखी गई नीव साबित हुई, तत्काल प्रभाव तो नहीं पड़ा पर १९४६ आते आते इसका प्रभाव दिखने लगा और देश के दो टुकड़े कर गया। 

कांग्रेस का विभाजन, नरम दल और गरम दल:
1905  में कांग्रेस में दो तरह के विचारधार ने जन्म लिया जिसको नरम दल, और गरम दल के नाम से जाना जाता है. इस तरह की दो विचार धारा के परिणाम स्वरुप कांग्रेस में दो गुट बनगए एक दल बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन बंगाल तक ही सिमित रखना चाहते थे, वही दूसरा दल बंगाल विभाजन के परिणाम स्वरुप उत्तपन आंदोलन को पुरे देश में चलना चाहते थे, कांग्रेस में दोनों दलो का आपस में मतभेद बढ़ते चलेगये जिसके परिणाम स्वरुप कांग्रेस का बिभाजन हो गया. कांग्रेस में नरम विचार धारा- महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, गोपाल कृष्ण गोखले, सरदार पटेल, दादाभाई नौरोजी, और गरम विचार धारा- लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल,  लेकिन नरम दल के नेताओं ने खुद को कट्टर साबित नहीं करना चाहते थे.इसलिए उन्होंने एक अन्य रास्ता निकाला और कहा कि स्वराज्य का मतलब हैं आत्मनिर्भर ब्रिटिश उपनिवेश” इस तरह उन्होंने स्वराज्य की परिभाषा ही बदलकर रख दी',' जिससे बंगाल विभाजन के साथ ही कांग्रेस के विभाजन की भी दिशा बन गयी.

बंगाल का पुनःएकीकरण 
बंगाल बिभाजन के परिणाम स्वरुप  देश में भारी  विरोध हुआ जिसके परिणाम स्वरुप वायसरायलॉर्ड कर्जन को ब्रिटिश सरकार ने वापिस बुला लिए और उनकी जगह  लार्ड हार्डिंग बंगाल के नए वायसरॉय बनाकर भेजा राजनीतिक विरोध के परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने बंगाल के विभाजन के अपने  निर्णय को पूर्ववत करने का निर्णय लिया और 12 दिसंबर 1911 में बंगाल के दो हिस्सों को फिर से मिला दिया गया। इस अधिनियम ने मुस्लिम समुदाय को दुखी कर दिया। धार्मिक आधार के बजाय भाषाई आधार पर नए प्रांत बनाए गए। राज्यों का गठन हिंदी भाषा, उड़िया भाषा और असमिया भाषाओं के आधार पर किया गया था। ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक राजधानी कोलकाता से नई दिल्ली चली गई।(दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा जॉर्ज पंचम ने 11 दिसंबर 1911 किया) 
बंगाल का विभाजन तो ख़तम हो गया लेकिन  हिन्दू मुसलमानो में दूरिया बढ़ा गया, हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष बढ़ता गया और परिणामस्वरूप दोनों समूहों की राजनीतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नए कानून पारित किए गए।

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