महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की 115वीं जयंतीचंद्रशेखर आजाद
जन्म दिवस और शिक्षा: चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश (झाबुआ) जनपदअलीराजपुर के भाबरा गांव, में हुआ था और वे एक ब्राह्मण परिवार में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के पुत्र रत्न के रूप में जन्म लिए थे। यह बचपन में ही खेल-खेल में तीर अंदाजी और निशाने बाजी सिख लिए थे, इनका प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुआ था, उसके बाद इन्होने संस्कृत की शिक्षा लेने बनारस चले आए।
असहयोग आंदोलन में भाग १५ कोड़े की सजा: बनारस में शिक्षा के दौरान 1921 में जब गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था उस समय मात्र चौदह वर्ष के थे, चंद्रशेखर आजाद महात्मा गांधीद्वारा चलाए जारहे असहयोग आंदोलन से इतना प्रभावित हुए की वह अपनी शिक्षा को अधूरा छोड़ कर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित किया गया. चंद्रशेखर आजाद निर्भीकता से मजिस्ट्रेट के पूछे गए सवाल का जबाब दिए, जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता बताया. घर पूछने पर जेल, चंद्रशेखर आजाद का जबाब सुनकर मजिस्ट्रेट इतना क्रोधित हुआ की उन्हें 15 कोड़े लगाने का हुक्म दिया, 15 कोड़े की सजा सुन कर भी चंद्रशेखर आजाद मुस्करा रहे थे, यह देख मजिस्ट्रेट ने आजाद से पूछा की तुम्हें 15 कोड़े लगाने की सजा हुई है डर नहीं लग रहा, तो आजाद ने मुस्कुरा कर कहा की मेरे शरीर पर पड़ने वाले हर कोड़े के दर्द से कही जादा पीड़ा मुझे भारत माँ की गुलामी के जकड़ी गई जंजीरो से हो रही है। मजिस्ट्रेट आजाद की बात पर चिढ़कर रह गया, जब आजाद को कोड़े मारे जारहे थे, तो हर कोड़े की मार पर बन्दे मातरम, भारत माता की जय, के नारे लगाते रहे, यही से इनका नाम चंद्रशेखर से चंद्रशेखरआजाद पड़ गया था।
संघर्ष कर के क्रांति संकल्प: असहयोग आंदोलन के दौरान 5 फ़रवरी 1922 में हुए चौरी-चौरा घटना के बाद गाँधी जी ने कांग्रेस और अन्य सदस्यों से राय लिए बिना असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया, इससे चंद्रशेखर आजाद बहुत दुखी हुए, और गांधी जी द्वार दिखाए गए स्वतंत्रता प्राप्ती के मार्ग को छोड़ कर, संघर्ष कर के क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने का संकल्प लिया,
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की स्थापना: आगे चल कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन की स्थापना अक्टूबर 1924 में भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और शचींद्रनाथ सान्याल, योगेश चन्द्र चटर्जी, आदि ने कानपुर में किया, पार्टी का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र क्रान्ति को व्यवस्थित करके ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन समाप्त करने और संयुक्त राज्य भारत की स्थापना करना था।
काकोरी कांड: क्रांतिकारियों आंदोलन को गति देने के लिए धन की आवश्यकता थी, चंद्रशेखर आजाद और राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने क्रान्तिकारी साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत का खजाना लुटने की योजना बनाई, राजेंद्र लाहिड़ी को ट्रेन की जंजीर खींचना था और बाकीसाथी को खजाना लुटने की जिम्मेदारी दीगई, 9 अगस्त 1925 को लखनऊ सहारनपुर पैसेंजर से अंग्रेजो के जारहे खजाने को लूटने के लिए चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और इनके अन्य साथियों ने काकोरी में ट्रेन में रखे खजाने को लूट लिया।
काकोरी कांड की लूट की कुल रकम 4,601 रुपए, 15 आने और छह पाई थी, जोकि आज भी एफआईआर की कॉपी काकोरी थाने में मौजूद है। काकोरी के पोलिस कप्तान का बयान 11 अगस्त 1925 को कहा, ‘डकैत (क्रांतिकारी) खाकी कमीज और हाफ पैंट पहने हुए थे. उनकी संख्या 25 थी. यह सब पढ़े-लिखे लग रहे थे.
गिरफ्तारियां: इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई. हालांकि काकोरी ट्रेन डकैती में 10 क्रन्तिकारी ही शामिल थे, लेकिन 40 से ज्यादा क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया. और उनपर मुकदमा चलाया गया। ।
मुठी भर क्रांतिकारियों इस घटना अंजाम दिया, इस लूट के बाद अंग्रेजों में हड़कंप मच गया था।आजादी का बिगुल फूंकने में भी काकोरी कांड ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
सजा, और फांसी: इस कांड में पकड़े गए प्रमुख लोगों को फांसी की सजा दी गई। रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां, और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई, और शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालापानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई, रामकृष्ण खत्री, योगेशचंद्र चटर्जी, गोविन्द चरणकर, मुकंदीलाल जी, राजकुमार सिंह, को 10-10 साल की सजा हुई, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, विष्णुशरण दुब्लिश को सात साल और रामदुलारे त्रिवेदी, भूपेन्द्रनाथ,और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई।
इस तरह यह घटना इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षर में अंकित हो गई।
काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक इस पर सरकार का 10 लाख रुपये खर्च हुआ. छह अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ।
फांसी के समय राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने कहा था, हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी, सबको अंतिम नमस्ते''
ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स: लाला जी की मृत्यु से सारा देश शोक संतप्त था, इधर चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव क्रांतिकारियों ने लालाजी पर जानलेवा लाठीचार्ज का बदला लेने का संकल्प लिया और 17 दिसम्बर 1928 को पूरी तैयारी के साथ ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉन्डर्स का इंतजार कर रहे थे, पुलिस अधीक्षक के दफ्तर से जॉन सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो भगत सिंह और राजगुरु ने 0.32 एमएम की सेमी ऑटोमैटिक पिस्टल कॉल्ट से जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दिया। उनके अंगरक्षक ने पीछा किया तो चंद्रशेखर ने अपनी पिस्टल से अंगरक्षकों पर गोलिया बरसाते भाग निकले इन देशभक्तों ने अपने प्रिय नेता की हत्या के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली।
सांडर्स की हत्या करके लालाजी की मौत के बदला ले लिया ऐसा लिखा पोस्टर लाहौर के गलियों में चस्पा कर दिया।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये अपने साथियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की सजा कम कराने के लिए, उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी ने उन्हें इलाहबाद जाकर जवाहरलाल नेहरू से मिलने का सलाह दिया उनके सलाह पर चंद्रशेखर आजाद ने नेहरू जी से मिलने उनके निवास आनन्द भवन गए। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से कहे की मेरे जिन साथियो को फाँसी की सजा हुई है, उसको उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें।
अमर सहीद चंद्रशेखर आजाद: 27 फरवरी 1931 चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र मिलकर कुछ बाते कर रहे थे, तभी भारी संख्या में पुलिस भी वह आ गयी, और पार्क को चारो तरफ से घेर लिया। एक अफ़सर हाथ में पिस्तौल लिए सीधा चंद्रशेखर आजाद की तरफ़ बढ़ा और आजाद पुलिस को अपनी तरफ आता देख अपनी पस्तौल से गोलिया चलाने लगे, तभी एक गोली आजाद के जांघ में लग गई और वो घायल हो गए, तब आजाद ने अपने साथी को वहा से चले जाने को बोला और कहा की इस आजादी की चिंगारी को जलाये रखने की लिए दोनों मेसे एक का जिन्दा रहना जरुरी है, तुम निकलो हम इनको देखते है, साथी मित्र के चले जाने के बाद, आज़ाद ने पिस्टल से अंग्रेज अफ़सर पर निशाना लगा कर गोली चला दिया पर वो गोली उसके कंधे में लगी. दोनों तरफ़ से दनादन गोलियाँ चल रही थीं. अफ़सर ने पीछे दौड़कर एक पेड़ की आड़ ली. उसके सिपाही कूद कर नाले में जा छिपे. गोली बारी में चंद्रशेखर के पास जब एक गोली बची तो उनका लगा की अब अग्रेजो का सामना करना मुश्किल है। ''चंद्रशेखर आजाद ने प्रण लिया था की कभी जीते जी अंग्रेजो के हांथ नहीं पकड़ा जाऊंगा'' उन्होंने अपने पिस्टल की बची आखिरी गोली अपने कनपटी पर सटा कर खुद को मार ली।
मृत चंद्रशेखर आजाद के पास जाने की हिमत नहीं हो रही थी अंग्रेज आफिसरों के:
इलाहबाद में अल्फ्रेड पार्क के जिस पेड़ के नीचे आज़ाद मारे गए थे, वहाँ हर दिन लोगों की भीड़ लगने लगी थी. लोग वहाँ पूजा पाठ करने लगे और दीप जलाने लगे, वह भीड़ जुटती देख अंग्रेज ने रातों रात उस पेड़ को जड़ से काटकर उसका नामोनिशान मिटा दिया और ज़मीन समथल कर दिया।
आज़ाद की अस्थियों में से एक अंश समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव भी ले गए थे और विद्यापीठ में जहाँ आज़ाद के स्मारक का पत्थर लगा है, उन्होंने उस अस्थि के टुकड़े को स्मारक के निचे रखवा दिया।
स्मृति स्थल: इलाहाबाद के जिस अल्फ्रेड पार्क में उनका निधन हुआ था, आजादी के बाद इलाहाबाद के उस पार्क का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे जो उनका जन्म स्थान था उसका नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया।
Very nice
ReplyDeleteचंद्र शेखर आजाद को सत सत नमन
ReplyDeleteLajbab
ReplyDeleteJay hind,,,,,Brave
ReplyDeleteMy salute to the brave revolutionary of the country
ReplyDeleteजय हिन्द जय भारत
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteनमन है देश के ऊपर न्योछावर होने वाले क्रांतिकारियों को
ReplyDeleteJai hind
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